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Dattatreya Jayanti

दत्तात्रेय जयंती


दत्तात्रेय जयंती


मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा को दत्त जयंती के रूप में भी मनाई जाती है!



आज के दिन ( १३ दिसंबर २०१६ ) को मनाया जाएगा! मान्यता अनुसार इस दिन भगवान दत्तात्रेय का जन्म हुआ था! धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान दत्तात्रेय को ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों का स्वरूप माना जाता है! दत्तात्रेय में ईश्वर एवं गुरु दोनों रूप समाहित हैं! जिस कारण इन्हें श्री गुरुदेवदत्त भी कहा जाता है!

मान्यता अनुसार दत्तात्रेय का जन्म मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा को प्रदोषकाल में हुआ था! श्रीमद्भगावत ग्रंथों के अनुसार दत्तात्रेय जी ने चौबीस गुरुओं से शिक्षा प्राप्त की थी! भगवान दत्त के नाम पर दत्त संप्रदाय का उदय हुआ! दक्षिण भारत में इनके अनेक प्रसिद्ध मंदिर भी हैं! मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा को भगवान दत्तात्रेय के निमित्त व्रत करने एवं उनके दर्शन-पूजन करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं!

दत्तात्रेय स्वरूप !!!

 

दत्तात्रेय स्वरूप !!!


दत्तात्रेय जयन्ती प्रतिवर्ष मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा को मनाई जाती है!



 दत्तात्रेय के संबंध में प्रचलित है कि इनके तीन सिर हैं और छ: भुजाएँ हैं! इनके भीतर ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश तीनों का ही संयुक्त रुप से अंश मौजूद है! इस दिन दत्तात्रेय जी के बालरुप की पूजा की जाती है! धर्म ग्रंथों के अनुसार एक बार तीनों देवियों पार्वती, लक्ष्मी तथा सावित्री जी को अपने पतिव्रत धर्म पर बहुत घमण्ड होता है अत: नारद जी को जब इनके घमण्ड के बारे में पता चला तो वह इनका घमण्ड चूर करने के लिए बारी-बारी से तीनों देवियों की परीक्षा लेते हैं! जिसके परिणाम स्वरूप दत्तात्रेय का प्रादुर्भाव होता है!

दत्तात्रेय जयंती कथा !!!


दत्तात्रेय जयंती कथा !!!


नारद जी देवियों का गर्व चूर करने के लिए बारी-बारी से तीनों देवियों के पास जाते हैं!



और देवी अनुसूया के पतिव्रत धर्म का गुणगान करते हैं! तीनों देवी ईर्ष्या से भर उठी और नारद जी के जाने के पश्चात भगवान शंकर से अनुसूया का सतीत्व भंग करने की जिद करने लगी! सर्वप्रथम नारद जी पार्वती जी के पास पहुंचे और अत्रि ऋषि की पत्नी देवी अनुसूया के पतिव्रत धर्म का गुणगान करने लगे!
देवीयों को सती अनुसूया की प्रशंसा सुनना कतई भी रास नहीं आया! घमण्ड के कारण वह जलने-भुनने लगी! नारद जी के चले जाने के बाद वह देवी अनुसूया के पतिव्रत धर्म को भंग करने की बात करने लगी! ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश तीनों को अपनी पत्नियो के सामने हार माननी पडी़ और वह तीनों ही देवी अनुसूया की कुटिया के सामने एक साथ भिखारी के वेश में जाकर खडे़ हो गए! जब देवी अनुसूया इन्हें भिक्षा देने लगी तब इन्होंने भिक्षा लेने से मना कर दिया और भोजन करने की इच्छा प्रकट की!

देवी अनुसूया ने अतिथि सत्कार को अपना धर्म मानते हुए उनकी बात मान ली और उनके लिए प्रेम भाव से भोजन की थाली परोस लाई! लेकिन तीनों देवों ने भोजन करने से इन्कार करते हुए कहा कि जब तक आप नग्न होकर भोजन नहीं परोसेगी तब तक हम भोजन नहीं करेगें! देवी अनुसूया यह सुनते ही पहले तो स्तब्ध रह गई और गुस्से से भर उठी! लेकिन अपने पतिव्रत धर्म के बल पर उन्होंने तीनो की मंशा जान ली!
उसके बाद देवी ने ऋषि अत्रि के चरणों का जल तीनों देवों पर छिड़क दिया! जल छिड़कते ही तीनों ने बालरुप धारण कर लिया! बालरुप में तीनों को भरपेट भोजन कराया! देवी अनुसूया उन्हें पालने में लिटाकर अपने प्रेम तथा वात्सल्य से उन्हें पालने लगी! धीरे-धीरे दिन बीतने लगे! जब काफी दिन बीतने पर भी ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश घर नही लौटे तब तीनों देवियों को अपने पतियों की चिन्ता सताने लगी!
देवियों को अपनी भूल पर पछतावा होने लगा! वह तीनों ही माता अनुसूया से क्षमा मांगने लगी! तीनों ने उनके पतिव्रत धर्म के समक्ष अपना सिर झुकाया. माता अनुसूया ने कहा कि इन तीनों ने मेरा दूध पीया है! इसलिए इन्हें बालरुप में ही रहना ही होगा! यह सुनकर तीनों देवों ने अपने - अपने अंश को मिलाकर एक नया अंश पैदा किया! इसका नाम दत्तात्रेय रखा गया! इनके तीन सिर तथा छ: हाथ बने! तीनों देवों को एकसाथ बालरुप में दत्तात्रेय के अंश में पाने के बाद माता अनुसूया ने अपने पति अत्रि ऋषि के चरणों का जल तीनों देवो पर छिड़का और उन्हें पूर्ववत रुप प्रदान कर दिया!

सहारा इंडिया कामगार संघटना

की ओर से सभी भाईयों को दत्तात्रेय जयन्ती

की हार्दिक शुभकामनाएँ !!! 

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